Friday, April 21, 2023

EARTH DAY- 2023

क्या यह संयोग-मात्र है कि समस्त जड़-चेतन को धारण करने वाली पृथ्वी को धरा- वसुन्धरा- धरती शब्दों से अलंकृत कर भूमि के धारणीय गुण को व्याख्यायित किया गया अथवा भारतीय मनीषियों की वैचारिक-बौद्धिक स्पष्टता ? निश्चित ही धरा शब्द धर्म की ही भान्ति धृ धातु से निष्पन्न होने के कारण स्वाभाविक ही धारणा गुणसम्पन्न है किन्तु क्या धर्म से भी कुछ सम्बन्ध है पृथ्वी का ? अथर्ववेद के १२वें काण्ड के प्रथम सूक्त का नाम भूमि-सूक्त है, जिसमे ६३ मन्त्र हैं ! इसमें से जिन मन्त्रों में भूमि के आधारभूत तत्वों का वर्णन है उनके आधार पर वर्तमान में पृथ्वी की दुर्दशा के कारणों व वैदिक ऋषियों के कालबाह्य सिद्धान्तों को समझने में निश्चित ही एक समुचित दिशा मिल सकती है जिसके आधार पर मानवमात्र SAVE EARTH की चिन्ता का निदान-पूर्व उपचार कर सकता है ! क्या हैं पृथ्वी की स्थिति के आधार ? भूमि-सूक्त का प्रथम मन्त्र “सत्यं बृहदुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञ: पृथिवीं धारयन्ति” सत्य- तप- ब्रह्म और यज्ञ ही प्रथ्वी की स्थिति के आधार हैं, यह घोषणा करता है ! आठवें मन्त्र में सत्य को पुन: रेखांकित करते हुए “यस्या हृदयं परमे व्योमन् सत्येनावृतं अमृतं पृथिव्या:” पृथ्वी का हृदय सत्य से ओत-प्रोत है, ऐसे अमृतवचन से सत्य के महत्व को सहज ही समझा जा सकता है ! इतके अतिरिक्त अथर्ववेद १२.१.१७ के अनुसार पृथ्वी की धारणा धर्म के द्वारा होती है “भूमिं पृथिवीं धर्मणा धृताम्” ! यह मन्त्र धरा और धर्म के धारणीय स्वभाव व इन दोनों शब्दों के उद्भव में “धृ” धातु की समानता के तार्किक व वैज्ञानिक पक्ष को दर्शाता है ! आज यदि पृथ्वी के अस्तित्व पर संकट अनुभव किया जा रहा है तथा इस संकट के निवारण के उपायों पर विचार किया जा रहा है, तब अथर्ववेद के यह मन्त्र निश्चित रूप से सम्पूर्ण विश्व समुदाय का पथ प्रशस्त कर सकते हैं ! यह मन्त्र मुल्त: धर्म के महत्व को स्थापित करते हैं, क्योंकि सत्य, तप आदि भी तो धर्म ही हैं ! मानवमात्र के उदात्ततम गुण/भाव ही धर्म हैं और यह न केवल मानव-मात्र के लिए धारणीय तत्व है वरन सृष्टि- समष्टि- पृथ्वी के अस्तित्व का लिए भी अनिवार्य है ! मनुष्यों के अतिरिक्त जड़-चेतन जगत स्वधर्म पालन करता ही है, केवल मनुष्य ही कतिपय स्वार्थवश अधर्म में पदार्पण करता है और केवल अपना ही नहीं जगती के विनाश का भी कारण बनता है ! आइये EARTH DAY के अवसर पर भूमि-सूक्त के अन्तिम मन्त्र १२.१.६३ “भूमे मातर्नि धेहि मा भद्रया सुप्रतिष्ठितम्”- “हे भूमि माँ मुझे अपने समस्त कल्याणभाव के बन्धन में रखना”, यह प्रार्थना करते हुए विश्व मंगल की कामना करें ! समुद्रवसने देवि Samudra Vasane Devi Mother Earth समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥ Samudra-Vasane Devi Parvata-Stana-Mannddale | Vissnnu-Patni Namastubhyam Paada-sparsham Kssama-Svame || Meaning: 1: (Oh Mother Earth) The Devi Who is having Ocean as Her Garments and Mountains as Her Bosom, 2: Who is the Consort of Sri Vishnu, I Bow to You; Please Forgive Us for Touching You with Our Feet. भारत से अधिक किसने समझा है पृथ्वी का महत्व ? वन्देमातरम ! डॉ. जय प्रकाश गुप्त 0