Tuesday, January 1, 2008

अंग्रेज़ी

अंग्रेज़ी
एक ही भाषा मेरे देश की, वह केवल अंग्रेज़ी है।
मेरे देश का नाम India, वह भी तो अंग्रेज़ी है।।
क्यों न हो? हम मैकाले के, अंग्रेज़ों के हैं ग़ुलाम।
तभी तो गर्व करें उस सब पर, दिखता जो अंग्रेज़ी है।।

अंग्रेज़ी पहनावा अपना, निर्लज्जता भले ही हो।
नारी के सब अंग खुले हैं, वह नग्नता भले ही हो।।
नारी का आभूषण लज्जा, है उतार फ़ैंका हमने।
स्पष्ट हो जिससे हम पर केवल, चढ़ा भूत अंग्रेज़ी है।।

नासापुट में छिद्र नहीं, ना ही कनों में बाली है।
टॉप-जीन्ज़ दो वस्त्र देह पर, चाल अति मतवाली है।।
परिणीता के मस्तक पर, बिन्दी अथवा सिंदूर नहीं है।
भारतीय क्यों दीखे वह तो, Gal बनी अंग्रेज़ी है।।

अंग्रेज़ी में नामपट्ट सब, एस डी. डी ए वी. बनते।
आर्य सनातन धर्म पुरातन, उसका सब पानी भरते।।
जिसमे पॉप-टॉप कल्चर है, और टॉपलैस अति सुंदर।
शिक्षा नहीं न ही विद्या है, ऐजुकेशन अंग्रेज़ी है।।

हिन्दी संस्कृत के शिक्षक भी, अंग्रेज़ी में नाम लिखें।
नन्दकिशोर हो गये ऐन.के., कृष्ण लाल के.ऐल. दीखें।।
अंग्रेज़ी में ही हस्ताक्षर कर, इनको सन्तोष मिले।
देशी ना कोई इनको कह दे, ये तो अंग्रेज़ी हैं।।

भारत में बस एक खेल है, क्रिकेट वह कहलाता है।
उसका भी तो अंग्रेज़ी से, अंग्रेज़ों से नाता है।।
इसके ज्वर से पीड़ित इन्डिया, का पूरा मानस अचेत।
क्रिकेट के वह शब्द बोलता, जो निश्चित अंग्रेज़ी हैं।।

अंग्रेज़ी से अंग्रेज़ों के गुरु नहीं, हम हो सकते हैं।
उनका कुछ पायें ना पायें, अपना सब कुछ खो सकते हैं।।
विश्वगुरु भारत है अपनी भाषा, अपनी संस्कृति से ही।
जान समझ कर सत्य, बसी तो मन में अंग्रेज़ी है।।

अच्छी कितनी हो अंग्रेज़ी या उर्दू, पर इनसे क्या आशा है।
परकीयों के हाथों अपनी विगत पराजय, और पराभव की ये दोनों भाषा हैं।।
भारत को वैभव सम्पन्न ये, नहीं बना सकती हैं कभी।
राष्ट्रधर्म के लिये इसलिये, त्याज्य है जो अंग्रेज़ी है।।

आओ आर्य समाज बनायें, यज्ञ नित्य हम करें पुनीत।
सदाचार और स्वाभिमान का, क्षीर बने मथकर नवनीत।।
पराधीनता और पराभव का विष, हवि में भस्म करें।
और त्याग दें परकीयों की, भाषा जो अंग्रेज़ी है।।